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यूरोपीय कम्पनियों का भारत में आगमन

         यूरोपीय कम्पनियों का भारत में आगमन भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय है, जिसने भारत के राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक ढांचे को गहराई से प्रभावित किया। यूरोपीय व्यापारियों का आगमन 15वीं सदी के उत्तरार्ध में समुद्री मार्गों के खुलने के साथ हुआ।

पृष्ठभूमि-

           प्राचीन काल में भारत और यूरोप के बीच व्यापार की शुरुआत यूनानियों (ग्रीक्स) के साथ मानी जाती है। सिकन्दर जब ईसा पूर्व 326 में भारत आया, तब से भारत और यूनान के बीच राजनीतिक और व्यापारिक सम्बन्ध मजबूत हुए। बाद में रोमनों (Romans) के साथ भी भारत का व्यापार बढ़ा। भारतीय मसाले, रेशम, हाथी दांत, सुगंधित तेल और रत्न रोम में बहुत लोकप्रिय थे। प्राचीन ग्रन्थ “पेरिप्लस ऑफ द एरिथ्रियन सी” जो एक अनाम यूनानी नाविक द्वारा लिखी गयी है, में भारत-यूरोप व्यापार का वर्णन मिलता है।

            मध्य काल में भारत और यूरोप के बीच व्यापार के कई स्थलीय तथा समुद्री मार्ग थे। स्थलीय मार्गों में प्रथम – सिल्क रुट द्वारा, भारत से मध्य एशिया और वहां से यूरोप तक जाया जाता था। इस मार्ग से रेशम, मसाले, चाय, चीनी मिट्टी इत्यादि वस्तुएं जाती थीं। द्वितीय स्थल मार्ग अरबों के माध्यम से था। अरब व्यापारी भारत से सामान लेकर उसे यूरोप पहुंचाते थे। इस मार्ग से यूरोप और भारत के बीच प्रत्यक्ष सम्पर्क नहीं था, परन्तु अरब लोग बिचौलियों की भूमिका में भारतीय सामानों को यूरोप तक पहुंचाते थे। समुद्री मार्गों में भारत के पश्चिमी तट से (जैसे-कालीकट, कोचीन) से जहाज अरब, फारस, मिस्र और फिर यूरोप तक जाते थे। यह मार्ग अरब सागर-लाल सागर-भूमध्य सागर होकर जाता था।

           इस समय एशिया का अधिकांश व्यापार अरबवासियों के हाथ में था एवं यह व्यापार पूर्वी देशों के गरम मसालों के कारण बहुत महत्वपूर्ण था। यूरोप में इन गरम मसालों की बहुत मांग थी जबकि यूरोपीय देश भारतीय वस्तुओं (मसाला इत्यादि) पर अरबों के जरिये निर्भर थे, जिससे यूरोप में ये भारतीय वस्तुएं मंहगीं पड़ती थे।

1453 ई0 की घटना-कुस्तुनतुनिया पर तुर्कों का अधिकार – 1453 ई0 में आटोमन तुर्क मेहमद-II द्वारा कुस्तुनतुनिया पर अधिकार कर लिया गया, जिससे महान ईसाई बैजेंटाइन साम्राज्य का अन्त हो गया, कुस्तुनतुनिया का नया नाम इस्तांबुल कर दिया गया। तुर्कों ने यूरोप और एशिया के बीच पुराने व्यापारिक मार्गों पर भी नियंत्रण कर लिया तथा अपने साम्राज्य से होकर पूर्वी देशों से व्यापार करने की सुविधा देने से इन्कार कर दिया। इससे यूरोपीय देशों को भारत और पूर्व एशिया तक नए समुद्री मार्ग खोजने की प्रेरणा मिली। 1453 ई. में कुस्तुनतुनिया का पतन न केवल एक साम्राज्य के अंत का प्रतीक था, बल्कि यह विश्व इतिहास की दिशा बदलने वाला क्षण भी था। इसी घटना ने भारत तक यूरोपीय आगमन और उपनिवेशवाद की भूमिका तय की।

भौगोलिक खोजों का युग – 15वीं सदी के दौरान जहाजरानी निर्माण एवं नौपरिवहन विज्ञान में महान प्रगति हुई। इस समय तक कुतुबनुमा (दिशा सूचक) का आविष्कार भी हो गया था। पुर्तगाल के राजकुमार प्रिंस हेनरी “द नेवीगेटर” के प्रयासों से भौगोलिक खोजों का कार्य आरम्भ हुआ। पुर्तगाल के नाविक बार्थोलोमोडियाज ने 1487 ई0 में उत्तमाशा अन्तरीप को खोज निकाला, जिसे “केप ऑफ गुड होप” कहा गया। 1494 ई0 में स्पेन निवासी कोलम्बस ने भारत पहुंचने का मार्ग ढूंढ़ते हुए अमरीका को खोज निकाला। इसी प्रकार 1498 ई0 में पुर्तगाली नाविक वास्कोडिगामा भारत पहुंचने में सफलता पाई।भारत में यूरोपवासियों के आने के क्रम में सर्वप्रथम पुर्तगीज थे तत्पश्चात डच, अंग्रेज, डेनिस और फ्रांसीसी आये।

पुर्तगाली

          यरोपवासियों में सर्वप्रथम पुर्तगीज भारत आये। पुर्तगाली नाविक वास्कोडिगामा केप ऑफ गुड होप (उत्तमाशा अन्तरीप) का चक्कर काटते हुए, अब्दुल मनीद नामक गुजराती पथ-प्रदर्शक की सहायता से मई 1498 ई0 में भारत के पश्चिमी तट पर स्थित कालीकट बंदरगाह पर पहुंचकर भारत के लिए नए समुद्री मार्ग की खोज की। उस समय कालीकट के तत्कालीन शासक जमोरिन ने वास्कोडिगामा का हार्दिक स्वागत किया तथा मसाले, जड़ी-बूटियां इत्यादि ले जाने की आज्ञा प्रदान की। वास्कोडिगामा को उस माल से यात्रा व्यय निकालने के बाद भी 60 गुना लाभ प्राप्त हुआ। 1502 ई0 में वास्कोडिगामा पुनः भारत आया। 1503 ई0 में पुर्तगालियों ने कोचीन में अपनी प्रथम कोठी स्थापित करने के पश्चात 1505 ई0 में कन्नूर में दूसरी कोठी स्थापित कर दी। इसी वर्ष 1505 ई0 में ही “फ्रांसिस्को डी अल्मीडा” को प्रथम पुर्तगाली वायसराय बनाकर भारत भेजा गया।

फ्रांसिस्को डी अल्मीडा (1505 ई0-1509 ई0) – फ्रांसिस्को डी अल्मीडा का आगमन भारत के प्रथम पुर्तगाली वायसराय के रुप में 1505 ई0 में हुआ । इसे पुर्तगाली सरकार की ओर से यह निर्देश मिला था कि वह भारत में ऐसे दुर्ग स्थापित करे जिसका उद्देश्य सिर्फ सुरक्षा न होकर, हिन्द महासागर के व्यापार पर पुर्तगाली नियंत्रण स्थापित करना भी हो। उसके द्वारा अपनाई गयी यह नीति “ब्लू वॉटर पालिसी” अथवा “शान्त जल की नीति” कहलाई। पुर्तगालियों का भारतीय समुद्री व्यापार पर एकाधिकार स्थापित करने के प्रयास में भारतीय समुद्री क्षेत्र में पुर्तगालियों और मुस्लिम शक्तियों के बीच वर्चस्व की लड़ाई शुरू हो गई ।

चौल का युद्ध (1508 ई0) - चौल का युद्ध इस संघर्ष की एक महत्वपूर्ण कड़ी थी, जो 1508 ई. में पुर्तगालियों और (मिश्र (Egypt) + गुजरात सुल्तान+तुर्की) की सम्मिलित नौसेना के बीच हुई। इस युद्ध में पुर्तगालियों की हार हुई तथा फ्रांसिस्को डी अल्मीडा का पुत्र मारा गया।

दीव का युद्ध (1509 ई0) – अपनी वापसी के पूर्व फ्रांसिस्को डी अल्मीडा ने चौल के युद्ध में हार का बदला 1509 ई. में "दीव के युद्ध (Battle of Diu)" में संयुक्त मुस्लिम बेड़े को पराजित कर लिया। इसके बाद भारतीय समुद्रों में पुर्तगालियों का दबदबा कई दशकों तक बना रहा।

अल्फांसो डी अलबुकर्क (1509 ई0-1515 ई0) – फ्रांसिस्को डी अल्मीडा के बाद अल्फांसो डी अलबुकर्क द्वितीय पुर्तगाली वायसराय बनकर 1509 ई0 में भारत आया। इसे भारत में पुर्तगीज शक्ति का वास्तविक संस्थापक माना जाता है। इसने कोचीन को अपना मुख्यालय बनाया। इसने 1510 ई0 में गोवा को बीजापुर के आदिलशाही सुल्तान से जीत लिया। 1511 ई0 में इसने दक्षिण-पूर्व एशिया की महत्वपूर्ण मसाला मण्डी मलक्का (मलेशिया) पर एवं 1515 ई0 में फारस की खाड़ी में स्थित “हारमुज” जिसे पूर्व का द्वार भी कहा जाता है, अधिकार कर लिया। ये तीनों नगर (गोवा, मलक्का व हारमुज) सामरिक दृष्टि से अतिमहत्वपूर्ण थे।

          अलबुकर्क भारत में स्थायी पुर्तगीज आबादी बसाना चाहता था इसलिए उसने पुर्तगालियों को भारतीय स्त्रियों से विवाह करने के लिए प्रोत्साहित किया। अलबुकर्क अपने क्षेत्र में सती प्रथा बन्द करा दिया था। 1515 ई0 में अपनी मृत्यु के पूर्व उसने गोवा को पुर्तगाली सत्ता तथा संस्कृति के महत्वपूर्ण केन्द्र के रुप में स्थापित कर दिया एवं उस समय तक पुर्तगीज भारत की सबसे बड़ी जल शक्ति बन चुके थे।

नीनो डी कुन्हा (1529 ई0-1538 ई0) – नीनो डी कुन्हा अगला प्रमुख पुर्तगाली गवर्नर था। इसका प्रमुख कार्य 1530 ई0 में पुर्तगालियों का सरकारी कार्यालय कोचीन से गोवा स्थानान्तरित करना था। नीनो डी कुन्हा ने मद्रास के निकट सेन्टथोमे एवं हुगली (बंगाल) में पुर्गगाली बस्तियों को स्थापित किया। इसने 1534 ई0 में बसीन पर जबकि 1535 ई0 में दीव पर अधिकार कर लिया। बसीन के प्रश्न पर उसने गुजरात के शासक बहादुरशाह से युद्ध हुआ, जिसमें बहादुरशाह की पराजय हुई तथा समुद्र में डूब जाने से बहादुरशाह की मृत्यु हो गयी।

          पुर्तगालियों ने धीरे-धीरे समुद्र के निकट कुछ महत्वपूर्ण बस्तियां बसाईं। 1559 ई0 में दमन पर भी उनका अधिकार हो गया। उनकी बस्तियों में दीव, दमन, चौल, सेन्टथोमी (मद्रास के निकट), हुगली, बम्बई शामिल थे।

पुर्तगाली प्रभुत्व का पतन – डच एवं ब्रिटिश कम्पनियों के हिन्द महासागर में आ जाने के कारण वहां से पुर्तगालियों का एकाधिकार समाप्त हो गया। अनेक स्थानों पर पुर्तगालियों को सैन्य पराजय का सामना करना पड़ा। 1538 ई0 में अदन पर तुर्की का प्रभुत्व स्थापित हो गया। 1658 ई0 में डचों ने दक्षिण-पूर्व एशिया में पुर्तगालियों के महत्वपूर्ण दुर्ग मलक्का को जीतकर वहां से पुर्तगालियों को बाहर खदेड़ दिया। अंग्रेज भी डचों से पीछे नही रहे, 1628 ई0 में फारसी सेना की सहायता से अंग्रेजों ने हारमुज पर भी कब्जा कर लिया। मुगल सम्राट शाहजहां के शासनकाल में कासिम खां ने 1632 ई0 में हुगली पर कब्जा कर लिया तथा मराठों ने 1739 ई0 में साष्टी और बसई पर अधिकार जमा लिया। केवल गोवा, दमन और दीव ही 1961 ई0 तक पुर्तगालियों के अधिकार में रहे।

पुर्तगाली प्रभुत्व के पतन का कारण – पुर्तगालियों के पतन के अनेक कारण थे।

धार्मिक असहिष्णुता, धार्मिक कट्टरता और जबरन धर्मांतरण - पुर्तगालियों ने कैथोलिक ईसाई धर्म को फैलाने के लिए जबरन धर्मांतरण और अत्याचार किए। इससे स्थानीय जनसंख्या में असंतोष फैला और विद्रोह की स्थिति बनी।पुर्तगाल की कमजोर स्थिति - 1580 ई. में पुर्तगाल स्पेन के अधीन चला गया और 60 वर्षों तक उसका हिस्सा रहा (1580–1640)। इस दौरान पुर्तगाली हितों की उपेक्षा हुई, जिससे उनका उपनिवेश कमजोर हुआ।

व्यापारिक दृष्टिकोण में कठोरता - पुर्तगाली केवल समुद्री व्यापार पर नियंत्रण चाहते थे और उन्होंने व्यापार को एकाधिकार की दृष्टि से देखा। उन्होंने स्थानीय व्यापारियों को दबाने का प्रयास किया, जिससे विरोध और असंतोष बढ़ा।अन्य यूरोपीय शक्तियों का आगमन - डच (Dutch), अंग्रेज (British) और फ्रांसीसी (French) जैसे अन्य यूरोपीय शक्तियों ने भारत में प्रवेश किया। इनकी नौसेना, व्यापारिक रणनीतियाँ और संगठन पुर्तगालियों से कहीं अधिक उन्नत थीं, जिसके सामने पुर्तगाली टिक नही सके।

प्रशासनिक अक्षमता और भ्रष्टाचार - पुर्तगाली प्रशासन में भ्रष्टाचार, अनियंत्रण और शोषण की प्रवृत्ति बढ़ गई थी। स्थानीय अधिकारियों ने व्यापार से अधिक व्यक्तिगत लाभ को प्राथमिकता दी।

डच और अंग्रेजों से पराजय - डचों ने मलक्का और अन्य पूर्वी व्यापार केंद्रों से पुर्तगालियों को बाहर निकाल दिया। अंग्रेजों ने पश्चिमी तट पर व्यापारिक ठिकानों को मजबूत कर लिया और धीरे-धीरे पुर्तगालियों ने गोवा छोड़कर अन्य ठिकाने खो गए।

भारतीय शासकों से संघर्ष - कई बार पुर्तगालियों को स्थानीय राजाओं से संघर्ष करना पड़ा, विशेषतः मराठों एवं मुगलों से। मुगल सम्राट शाहजहां के शासनकाल में कासिम खां ने 1632 ई0 में हुगली पर कब्जा कर लिया तथा मराठों ने 1739 ई0 में साष्टी और बसई पर अधिकार जमा लिया।

            भारत में पुर्तगाली प्रभुत्व का पतन आंतरिक दुर्बलता, धार्मिक कट्टरता, व्यापारिक नीतियों की कठोरता, प्रशासनिक असफलता तथा नई यूरोपीय शक्तियों की प्रतिस्पर्धा के कारण हुआ। 1961 ई. में गोवा को भारत में मिलाने के साथ भारत में पुर्तगाली शासन का पूर्ण अंत हो गया।

भारत में पुर्तगाली आधिपत्य का परिणाम - भारत में पुर्तगाली आधिपत्य (Portuguese rule) के कई महत्वपूर्ण राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक परिणाम हुए। यह प्रभाव लगभग 16वीं शताब्दी से लेकर 20वीं शताब्दी तक विभिन्न रूपों में देखने को मिला।

1. ईसाई धर्म का प्रसार - पुर्तगालियों ने कैथोलिक ईसाई धर्म के प्रचार-प्रसार में सक्रिय भूमिका निभाई। गोवा, दमन, दीव आदि क्षेत्रों में बड़ी संख्या में चर्च बनाए गए। जबरन धर्मांतरण और इन्क्विजिशन (धार्मिक जांच आयोग) के कारण स्थानीय समाज में भय और असंतोष फैला।

2. पश्चिमी शिक्षा और संस्कृति का प्रवेश - पुर्तगालियों ने गोवा आदि क्षेत्रों में विद्यालय, कॉलेज और सेमिनरी (ईसाई धार्मिक शिक्षा केंद्र) स्थापित किए। भारत में पश्चिमी संगीत, वास्तुकला, भोजन और परिधान का प्रारंभिक प्रभाव पुर्तगालियों के माध्यम से ही आया।

3. स्थानीय समाज और संस्कृति पर प्रभाव - स्थानीय भाषाओं में पुर्तगाली शब्द शामिल हुए (विशेषकर कोंकणी में)। वास्तुकला में गोथिक और बारोक शैली का प्रभाव पड़ा, जो आज भी गोवा के चर्चों में देखा जा सकता है।

4. व्यापार पर प्रभाव - पुर्तगालियों ने मसाले, कपड़ा, कीमती पत्थर आदि के व्यापार पर कब्ज़ा किया और कई क्षेत्रों में व्यापार पर एकाधिकार स्थापित किया। लेकिन वे स्थानीय व्यापारियों को सहयोग देने के बजाय दबाने लगे, जिससे विद्रोह और प्रतिरोध शुरू हुआ।

5. सामुद्रिक शक्ति के विकास का आरंभ - पुर्तगाली भारत में समुद्री शक्ति (नौसेना) के पहले उपयोगकर्ता थे। उनके आने से भारत का समुद्री मार्गों से वैश्विक संपर्क प्रारंभ हुआ।

6. राजनीतिक प्रभाव - पुर्तगाली भारत में प्रत्यक्ष शासन लाने वाले पहले यूरोपीय थे (जैसे गोवा में)। उन्होंने किलों का निर्माण किया और स्थानीय राजाओं से युद्ध कर कई क्षेत्रों पर नियंत्रण स्थापित किया।

7. भारतीय स्वतंत्रता संग्राम पर प्रभाव - 1947 में भारत स्वतंत्र हो गया, लेकिन गोवा, दमन और दीव पुर्तगालियों के नियंत्रण में बने रहे। अंततः 1961 में "ऑपरेशन विजय" के अंतर्गत भारत सरकार ने सैनिक कार्रवाई करके इन क्षेत्रों को भारत में मिला लिया।

8. धार्मिक सहिष्णुता को ठेस - पुर्तगाली शासकों ने कई बार मंदिरों को नष्ट किया और हिंदुओं पर कठोर प्रतिबंध लगाए, जिससे धार्मिक सहिष्णुता का हनन हुआ।

             भारत में पुर्तगाली आधिपत्य का प्रभाव धर्म, संस्कृति, शिक्षा, व्यापार और राजनीति जैसे क्षेत्रों में स्पष्ट रूप से देखा गया। यद्यपि उन्होंने पश्चिमी संपर्क और समुद्री व्यापार का मार्ग प्रशस्त किया, लेकिन उनकी धार्मिक कट्टरता और व्यापारिक एकाधिकार नीति ने स्थानीय समाज में असंतोष और विद्रोह को जन्म दिया।

प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. वास्को-डि-गामा की भारत यात्रा में उसे किस गुजराती नाविक से मार्गदर्शन प्राप्त हुआ था?

A) अब्दुल करीम

B) अब्दुल रहमान

C) अब्दुल मजीद

D) अब्दुल कादिर

✅सही उत्तर: C) अब्दुल मजीद

📘 स्पष्टीकरण:वास्को-डि-गामा की ऐतिहासिक भारत यात्रा 1498 ई. में अब्दुल मजीद नामक गुजराती मुस्लिम नाविक के मार्गदर्शन से संभव हो सकी। उसने अफ्रीकी तट से भारत के कालीकट बंदरगाह तक पहुँचने में सहायता की। यह संपर्क भारत-यूरोप समुद्री व्यापार के एक नए युग की शुरुआत थी।

प्रश्न 2. भारत में “ब्लू वॉटर पॉलिसी” को लागू करने वाला प्रथम पुर्तगाली वायसराय कौन था?

A) अल्फांसो डी अलबुकर्क

B) फ्रांसिस्को डी अल्मीडा

C) नीनो डी कुन्हा

D) पेद्रो अल्वारेज

✅सही उत्तर: B) फ्रांसिस्को डी अल्मीडा

 स्पष्टीकरण:फ्रांसिस्को डी अल्मीडा (1505-1509 ई.) पुर्तगाल का पहला वायसराय था जिसने "ब्लू वॉटर पॉलिसी" (Blue Water Policy) को लागू किया। इस नीति का उद्देश्य हिन्द महासागर में पुर्तगाली नौसेना का प्रभुत्व स्थापित करना था ताकि समुद्री मार्गों पर पूर्ण नियंत्रण बना रहे और स्थलीय विस्तार की आवश्यकता न पड़े।

प्रश्न 3. 1508 ई. में हुए चौल युद्ध में पुर्तगालियों की हार किसके विरुद्ध हुई थी?

A) मराठा + मुगल सेना

B) तुर्क + मिस्र + गुजरात की संयुक्त नौसेना

C) अरब + बंगाल की नौसेना

D) डच + फारसी नौसेना

✅सही उत्तर: B) तुर्क + मिस्र + गुजरात की संयुक्त नौसेना

📘 स्पष्टीकरण:1508 ई. में चौल के युद्ध में पुर्तगालियों को मिस्र, तुर्की और गुजरात की सम्मिलित नौसेना ने हराया। इस संघर्ष में फ्रांसिस्को डी अल्मीडा का पुत्र भी मारा गया, जिससे पुर्तगालियों में आक्रोश फैल गया। यह युद्ध भारत में समुद्री शक्ति के लिए पहली बड़ी चुनौती थी।

प्रश्न 4. भारत में पुर्तगालियों की वास्तविक सत्ता का संस्थापक किसे माना जाता है?

A) ड्यूक अल्वारेज

B) अल्फांसो डी अलबुकर्क

C) पेद्रो डी अल्मेडा

D) मैनुएल I

✅सही उत्तर: B) अल्फांसो डी अलबुकर्क

📘 स्पष्टीकरण:अल्फांसो डी अलबुकर्क (1509-1515 ई.) को भारत में पुर्तगाली शक्ति का वास्तविक संस्थापक माना जाता है। उसने गोवा (1510), मलक्का (1511) और हारमुज (1515) जैसे सामरिक क्षेत्रों पर अधिकार कर पुर्तगाल की समुद्री शक्ति को स्थापित किया। उसने स्थायी बस्तियाँ बसाईं और भारतीय महिलाओं से विवाह को बढ़ावा दिया जिससे उपनिवेशीय आबादी की नींव पड़ी।

प्रश्न 5. निम्नलिखित में से कौन-सा बंदरगाह पुर्तगालियों ने फारस की खाड़ी में 1515 ई. में अधिकार में लिया था?

A) बसई

B) अदन

C) हारमुज

D) अर्मुज

✅सही उत्तर: C) हारमुज

📘 स्पष्टीकरण:अल्फांसो डी अलबुकर्क ने 1515 ई. में फारस की खाड़ी में स्थित सामरिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण बंदरगाह हारमुज (Hormuz) पर अधिकार कर लिया। यह स्थान “पूर्व का द्वार” कहलाता था और इसके नियंत्रण से पुर्तगालियों को पूर्वी व्यापार पर निर्णायक बढ़त मिली।

 

प्रश्न 6. वास्को-डि-गामा की पहली भारत यात्रा में कितने गुना लाभ हुआ था?

A) 40 गुना

B) 60 गुना

C) 80 गुना

D) 100 गुना

✅सही उत्तर: B) 60 गुना

📘 स्पष्टीकरण:वास्को-डि-गामा जब 1498 में मसाले, जड़ी-बूटियाँ आदि भारत से ले गया, तो उसके माल को बेचने से उसके पूरे यात्रा खर्च के बाद भी 60 गुना लाभ हुआ। यह लाभ यूरोपीय व्यापारियों को भारत में व्यापार के लिए अत्यंत प्रेरणादायक सिद्ध हुआ।

प्रश्न 7. 1510 ई. में गोवा को किससे जीतकर पुर्तगालियों ने कब्जा किया था?

A) बहमनी सुल्तान से

B) बीजापुर के आदिलशाही सुल्तान से

C) मराठों से

D) अहमदनगर के निज़ाम से

✅सही उत्तर: B) बीजापुर के आदिलशाही सुल्तान से

📘 स्पष्टीकरण:अल्फांसो डी अलबुकर्क ने 1510 ई. में गोवा को बीजापुर के आदिलशाही शासक से छीनकर पुर्तगालियों के लिए एक स्थायी केंद्र बनाया। गोवा आगे चलकर पुर्तगाली शासन और कैथोलिक धर्म का सबसे बड़ा केंद्र बना।

 

प्रश्न 8. भारत में पुर्तगालियों का वाणिज्यिक केंद्र कोचीन से गोवा कब स्थानांतरित किया गया?

A) 1520 ई.

B) 1530 ई.

C) 1545 ई.

D) 1550 ई.

✅सही उत्तर: B) 1530 ई.

📘 स्पष्टीकरण:नीनो डी कुन्हा (1529-1538 ई.) ने पुर्तगालियों के वाणिज्यिक और प्रशासनिक मुख्यालय को 1530 ई. में कोचीन से गोवा स्थानांतरित कर दिया। इससे गोवा पुर्तगालियों की औपनिवेशिक सत्ता का प्रमुख केंद्र बन गया।

प्रश्न 9. मुगल सम्राट शाहजहां के शासन में हुगली से पुर्तगालियों को किसने निष्कासित किया?

A) खान-ए-जहाँ

B) कासिम खाँ

C) अफज़ल खाँ

D) खिज़र खाँ

✅सही उत्तर: B) कासिम खाँ

📘 स्पष्टीकरण:1632 ई. में मुगल सम्राट शाहजहां के शासनकाल में उसके सेनापति कासिम खाँ ने हुगली में बसे पुर्तगालियों पर हमला किया और उन्हें निष्कासित कर दिया। इसका प्रमुख कारण उनका जबरन धर्मांतरण और गुलाम व्यापार था।

 

प्रश्न 10. भारत में पुर्तगाली प्रभुत्व का अंतिम अंत कब हुआ?

A) 1857 ई.

B) 1947 ई.

C) 1954 ई.

D) 1961 ई.

✅सही उत्तर: D) 1961 ई.

📘 स्पष्टीकरण:हालाँकि भारत 1947 में स्वतंत्र हो गया, लेकिन गोवा, दमन और दीव पर पुर्तगालियों का नियंत्रण बना रहा। 1961 में भारत सरकार ने "ऑपरेशन विजय" के तहत सैन्य कार्रवाई कर इन क्षेत्रों को भारत में मिला लिया, जिससे पुर्तगाली प्रभुत्व का पूर्ण अंत हुआ।

 

प्रश्न 11. 'ब्लू वॉटर पालिसी' (Blue Water Policy) का प्रमुख उद्देश्य क्या था?

(A) समुद्रों में पुर्तगाली उपनिवेशों की स्थापना

(B) स्थलीय क्षेत्रों पर साम्राज्य विस्तार

(C) भारतीय राजाओं से सैन्य संधियाँ करना

(D) धार्मिक प्रचार हेतु मिशनरी भेजना

✅ सही उत्तर: (A) समुद्रों में पुर्तगाली उपनिवेशों की स्थापना

📘 स्पष्टीकरण:ब्लू वॉटर पालिसी फ्रांसिस्को डी अल्मीडा की नीति थी जिसका उद्देश्य समुद्री शक्ति के माध्यम से हिन्द महासागर के व्यापार पर पुर्तगाली एकाधिकार स्थापित करना था। इस नीति के तहत समुद्र में दुर्गों की स्थापना, नौसेनिक प्रभुत्व और अन्य प्रतिस्पर्धी समुद्री शक्तियों का दमन शामिल था। यह नीति स्थलीय विस्तार से इतर थी और समुद्री वर्चस्व पर केंद्रित थी।

 

प्रश्न 12. 1508 ई. के 'चौल के युद्ध' में किसकी मृत्यु हो गई थी?

(A) अल्फांसो डी अलबुकर्क

(B) वास्को-डि-गामा(C)

फ्रांसिस्को डी अल्मीडा के पुत्र

(D) बहादुरशाह

✅ सही उत्तर: (C) फ्रांसिस्को डी अल्मीडा के पुत्र

📘 स्पष्टीकरण:चौल का युद्ध 1508 ई. में पुर्तगालियों और मिश्र, तुर्क तथा गुजरात की संयुक्त नौसेना के बीच लड़ा गया था। इस युद्ध में पुर्तगालियों को पराजय मिली और फ्रांसिस्को डी अल्मीडा के पुत्र की मृत्यु हो गई, जिससे अल्मीडा आक्रोशित हो गया और उसने प्रतिशोध की भावना से 1509 में दीव का युद्ध लड़ा।

 

प्रश्न 13. अल्फांसो डी अलबुकर्क को भारत में पुर्तगाली शक्ति का वास्तविक संस्थापक क्यों कहा जाता है?

(A) उसने पुर्तगालियों को धार्मिक सहिष्णुता अपनाने को कहा

(B) उसने भारत से पुर्तगाल को जोड़ने वाली रेल लाइन बनवाई

(C) उसने गोवा, मलक्का और हारमुज पर विजय प्राप्त की

(D) उसने पुर्तगालियों को भारत से वापस बुला लिया

✅ सही उत्तर: (C) उसने गोवा, मलक्का और हारमुज पर विजय प्राप्त की

📘 स्पष्टीकरण:अल्फांसो डी अलबुकर्क ने 1510 में गोवा, 1511 में मलक्का तथा 1515 में हारमुज को जीतकर पुर्तगाली सामरिक स्थिति को अत्यधिक मजबूत किया। उसने स्थायी उपनिवेश बसाने की नीति अपनाई और पुर्तगाली प्रशासन व संस्कृति को भारत में स्थायित्व प्रदान किया। इसलिए उसे 'भारत में पुर्तगाली शक्ति का वास्तविक संस्थापक' कहा जाता है।

 

प्रश्न 14. अल्बुकर्क ने भारत में पुर्तगालियों को भारतीय महिलाओं से विवाह की अनुमति क्यों दी?

(A) जनसंख्या बढ़ाने हेतु

(B) व्यापारिक लाभ के लिए

(C) स्थानीय समाज में स्थायित्व और सांस्कृतिक समावेश हेतु

(D) मिशनरी प्रचार के विरोध में

✅ सही उत्तर: (C) स्थानीय समाज में स्थायित्व और सांस्कृतिक समावेश हेतु

📘 स्पष्टीकरण:अल्बुकर्क का उद्देश्य भारत में एक स्थायी पुर्तगाली समुदाय बसाना था। भारतीय स्त्रियों से विवाह करवाकर उसने सामाजिक-सांस्कृतिक समावेश की कोशिश की ताकि पुर्तगालियों की उपस्थिति केवल व्यापारी या सैनिक न होकर स्थानीय समाज में गहरी जड़ें जमा सके।

 

प्रश्न 15. निम्न में से किस बंदरगाह पर पुर्तगालियों ने सर्वप्रथम कोठी स्थापित की?

(A) गोवा

(B) कोचीन

(C) दीव

(D) बम्बई

✅ सही उत्तर: (B) कोचीन

📘 स्पष्टीकरण:1503 ई. में पुर्तगालियों ने कोचीन में अपनी प्रथम कोठी (Factory) स्थापित की, जिससे भारत में उनका व्यापारिक विस्तार प्रारंभ हुआ। कोचीन उनका पहला स्थायी व्यापारिक ठिकाना बना और बाद में यहीं से वे पूरे पश्चिमी तट पर फैलते गए।

 

प्रश्न 16. दीव के युद्ध (1509 ई.) का क्या ऐतिहासिक महत्व था?

(A) भारत से पुर्तगालियों का अंत हुआ

(B) ब्रिटिशों ने दीव पर अधिकार किया

(C) पुर्तगालियों ने समुद्री वर्चस्व प्राप्त किया

(D) मुगलों ने पुर्तगालियों को हराया

✅ सही उत्तर: (C) पुर्तगालियों ने समुद्री वर्चस्व प्राप्त किया

📘 स्पष्टीकरण:दीव के युद्ध में फ्रांसिस्को डी अल्मीडा ने मिश्र, तुर्क और गुजरात की संयुक्त नौसेना को हराकर हिन्द महासागर में पुर्तगालियों की स्थिति अत्यंत मजबूत कर दी। इसके पश्चात् भारतीय जलमार्गों पर कई दशकों तक पुर्तगालियों का एकाधिकार बना रहा।

 

प्रश्न 17. 'हारमुज' जिसे पुर्तगालियों ने 1515 ई. में अधिग्रहीत किया, क्यों महत्वपूर्ण था?

(A) धार्मिक तीर्थ स्थल

(B) अफ्रीकी व्यापार के लिए प्रवेश द्वार

(C) फारस की खाड़ी में सामरिक और व्यापारिक दृष्टि से महत्वपूर्ण बंदरगाह

(D) चीनी व्यापार का केंद्र

✅ सही उत्तर: (C) फारस की खाड़ी में सामरिक और व्यापारिक दृष्टि से महत्वपूर्ण बंदरगाह

📘 स्पष्टीकरण:हारमुज (Hormuz) फारस की खाड़ी का एक प्रमुख बंदरगाह था, जिसे 'पूर्व का द्वार' कहा जाता था। इसे अधिग्रहीत कर पुर्तगालियों ने फारस और मध्य एशिया के व्यापार पर नियंत्रण स्थापित किया। इसका नियंत्रण सामरिक दृष्टि से भी अत्यंत आवश्यक था।

 

प्रश्न 18. भारत में पुर्तगालियों की प्रशासनिक राजधानी कोचीन से गोवा कब स्थानांतरित की गई?

(A) 1505 ई.

(B) 1529 ई.

(C) 1530 ई.

(D) 1545 ई.

✅ सही उत्तर: (C) 1530 ई.

📘 स्पष्टीकरण:नीनो डी कुन्हा ने 1530 ई. में पुर्तगाली प्रशासनिक कार्यालय कोचीन से गोवा स्थानांतरित कर दिया था। गोवा सामरिक, व्यापारिक और धार्मिक गतिविधियों का मुख्य केंद्र बन गया और पुर्तगालियों की राजधानी बना रहा।

 

प्रश्न 19. 'सेन्टथोमे' (St. Thomas) कहाँ स्थित था, जहाँ पुर्तगालियों ने अपनी बस्ती स्थापित की थी?

(A) महाराष्ट्र

(B) बंगाल

(C) मद्रास के निकट

(D) मणिपुर

✅ सही उत्तर: (C) मद्रास के निकट

📘 स्पष्टीकरण:सेन्टथोमे, मद्रास (वर्तमान चेन्नई) के समीप स्थित था। पुर्तगालियों ने यहाँ अपनी व्यापारिक और धार्मिक बस्ती स्थापित की। यह क्षेत्र प्रारंभ में ईसाई मिशनरी गतिविधियों का भी केंद्र रहा।

 

प्रश्न 20. भारत में पुर्तगाली आधिपत्य की समाप्ति कब हुई?

(A) 1947 ई.

(B) 1956 ई.

(C) 1961 ई.

(D) 1965 ई.

✅ सही उत्तर: (C) 1961 ई.

📘 स्पष्टीकरण:1961 ई. में भारत सरकार ने "ऑपरेशन विजय" के तहत गोवा, दमन और दीव को पुर्तगालियों से सैन्य बल द्वारा मुक्त करवाया और इन्हें भारत में सम्मिलित कर लिया गया। इस घटना के साथ भारत में 450 वर्षों से चल रहा पुर्तगाली शासन समाप्त हो गया।

 

प्रश्न 21. भारत में तम्बाकू जैसी विदेशी फसल को पहली बार किस यूरोपीय शक्ति ने भारतीय कृषि प्रणाली में शामिल किया?

A) अंग्रेज, बंगाल में

B) डच, कोरोमंडल तट पर

C) पुर्तगाली, गोवा और गुजरात में

D) फ्रांसीसी, पांडिचेरी क्षेत्र में

✅ सही उत्तर: C) पुर्तगाली, गोवा और गुजरात में

📘 स्पष्टीकरण:पुर्तगालियों ने तम्बाकू को ब्राज़ील से भारत लाकर पहली बार इसकी व्यावसायिक खेती को प्रोत्साहित किया। सोलहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में गोवा, गुजरात और आंध्र के कुछ क्षेत्रों में इसकी खेती आरंभ हुई। उन्होंने न केवल तम्बाकू की खेती करवाई, बल्कि इसके सेवन की आदत भी भारतीय समाज में फैलने लगी। बाद में यह मुगलों और अन्य भारतीय शासकों के दरबार में भी लोकप्रिय हुआ।

 

प्रश्न 22. भारत में मुद्रण क्रांति की शुरुआत, विशेषकर धार्मिक ग्रंथों के प्रकाशन हेतु छापाखाने की स्थापना, सबसे पहले किस यूरोपीय शक्ति ने की थी?

A) डच – मलयालम भाषी क्षेत्र में

B) पुर्तगाली – गोवा में

C) फ्रांसीसी – चंद्रनगर में

D) अंग्रेज – मद्रास में

✅ सही उत्तर: B) पुर्तगाली – गोवा में

📘 स्पष्टीकरण:भारत में पहला छापाखाना (Printing Press) 1556 ई. में गोवा में पुर्तगालियों द्वारा स्थापित किया गया था। इसका उद्देश्य मुख्यतः ईसाई धर्म के प्रचार-प्रसार हेतु बाइबिल तथा धार्मिक साहित्य को भारतीय भाषाओं में प्रकाशित करना था। यह प्रेस भारत में आधुनिक संचार माध्यमों की नींव रखने वाला पहला प्रयास था, जिसने बाद में भाषा व शिक्षा के क्षेत्र में व्यापक क्रांति लाई।

 

प्रश्न 23. भारत में जहाज निर्माण कौशल को किस यूरोपीय शक्ति ने तकनीकी सुधारों और सैन्य उद्देश्यों से बढ़ावा दिया, विशेषकर गोवा क्षेत्र में?

A) पुर्तगाली

B) डच

C) अंग्रेज

D) डेनिश

✅ सही उत्तर: A) पुर्तगाली

📘 स्पष्टीकरण:गोवा में पुर्तगालियों ने समुद्री शक्ति को मजबूत करने हेतु शिपयार्ड स्थापित किए और भारतीय लकड़ी तथा श्रमिकों की सहायता से अपने जहाजों का निर्माण करवाया। उन्होंने भारतीय कारीगरों को यूरोपीय जहाज निर्माण तकनीकों में प्रशिक्षित भी किया। इससे न केवल पुर्तगाल की सैन्य शक्ति को मजबूती मिली, बल्कि भारत के पारंपरिक जहाज निर्माण उद्योग को भी नया आयाम मिला।

 

प्रश्न 24. गोवा में पुर्तगालियों द्वारा निर्मित चर्चों में प्रयुक्त प्रमुख स्थापत्य शैली कौन-सी थी, जो मध्यकालीन यूरोप से प्रेरित थी?

A) मुगल स्थापत्य

B) गोथिक शैली

C) रोमनस्क शैली

D) बारोक शैली

✅ सही उत्तर: B) गोथिक शैली

📘 स्पष्टीकरण:गोथिक शैली यूरोप की मध्यकालीन ईसाई स्थापत्य शैली थी, जिसे पुर्तगालियों ने गोवा के चर्चों में अपनाया। चर्च ऑफ बॉम जीसस (Bom Jesus Basilica) और सेंट कैथेड्रल (Sé Cathedral) जैसे चर्चों में ऊँचे मेहराब, बेलनाकार स्तंभ, और रंगीन काँच की खिड़कियाँ इस शैली की विशेषताएँ हैं। यह भारतीय स्थापत्य पर यूरोपीय प्रभाव का प्रत्यक्ष प्रमाण है।

 

प्रश्न 25. भारत में भाषाई अध्ययन एवं प्रचार के संदर्भ में पुर्तगालियों द्वारा किया गया कौन-सा कार्य विशेष रूप से उल्लेखनीय था?

A) संस्कृत विद्यालयों की स्थापना

B) भारतीय भाषाओं में व्याकरण पुस्तकों का लेखन

C) भारतीय लोक गीतों का संकलन

D) फारसी-अरबी अनुवाद संस्थान की स्थापना

✅ सही उत्तर: B) भारतीय भाषाओं में व्याकरण पुस्तकों का लेखन

📘 स्पष्टीकरण:पुर्तगालियों ने भारतीय भाषाओं जैसे कोंकणी, तमिल, मलयालम आदि को सीखने के लिए शब्दकोश और व्याकरण ग्रंथ तैयार किए। गोवा में “Arte da Lingua Canarim” (कोंकणी का व्याकरण) और फादर हेनरिक हेनरिक्स द्वारा तमिल भाषा में कार्य इसके उदाहरण हैं। ये प्रयास न केवल मिशनरी कार्यों के लिए थे, बल्कि भारतीय भाषाओं के प्रारंभिक अध्ययन में मील का पत्थर सिद्ध हुए।

 

डच

 

          पुर्तगालियों के बाद डच भारत आये। डच नीदरलैण्ड या हालैण्ड के निवासी थे। 1596 ई0 में कार्नेलियस हाउटमैन के नेतृत्व में पहला डच अभियान भारत आया। 1602 ई0 में कई डच कम्पनियों को मिलाकर “यूनाइटेड ईस्ट इण्डिया कम्पनी ऑफ नीदरलैण्ड” के नाम से एक विशाल व्यापारिक संस्थान की स्थापना की गयी। इस कम्पनी का वास्तविक नाम “वेरिंगदे ओस्ट इंडिशे कम्पनी (VOC)” था। डचों ने पुर्तगालियों से संघर्ष कर उनकी शक्ति को कमजोर कर दिया तथा भारत के प्रमुख मसाला उत्पादन क्षेत्रों पर नियंत्रण स्थापित कर लिया। डचों ने गुजरात, बंगाल, बिहार एवं उड़ीसा में अपनी कोठियां स्थापित कीं। भारत में प्रथम डच फैक्ट्री की स्थापना 1605 ई0 में मसूलीपट्टनम में हुई। डच मूल रुप से काली मिर्च तथा अन्य मसाला व्यापार में ही रुचि रखते थे। ये मसाले मुख्यतः इण्डोनेशिया में मिलते थे, इसलिए वह डच कम्पनी का प्रमुख केन्द्र बन गया था। भारत में दूसरी डच फैक्ट्री की स्थापना पोत्तोपोली (निजामपत्तम) में स्थापित किया गया। 1610 ई0 में डचों ने चन्द्रगिरि के राजा से समझौता करके पुलीकट में भी एक अन्य फैक्ट्री की स्थापना कर पुलीकट को अपना मुख्यालय बना लिया। डचों ने यहीं पर (पुलीकट में) अपने सिक्के पैगोडा ढाले। डचों ने मसालों के स्थान पर भारतीय कपड़ों के निर्यात को अधिक महत्व दिया। डचों ने स्वयं कासिम बाजार में रेशम की चक्की का उद्योग स्थापित किया। 1759 ई0 में “बेदरा(बंगाल) के युद्ध” में अंग्रेजों द्वारा पराजित होने के कारण भारत में उनकी शक्ति समाप्त हो गयी।

प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. भारत में डचों का पहला अभियान किसके नेतृत्व में आया और कब?

(A) पीटर वान डेन ब्रुक – 1602
(B) कार्नेलियस हाउटमैन – 1596
(C) जान पिटर्सून – 1610
(D) हेनरी हडसन – 1590

उत्तर: (B) कार्नेलियस हाउटमैन – 1596

स्पष्टीकरण:
डचों का भारत में पहला अभियान 1596 ई. में कार्नेलियस हाउटमैन के नेतृत्व में आया था। यह घटना यूरोप और एशिया के बीच नए समुद्री मार्गों की खोज के संदर्भ में महत्वपूर्ण थी। पुर्तगालियों के एकाधिकार को चुनौती देने के लिए डचों ने अपने अभियान की शुरुआत की थी, जो बाद में व्यापारिक प्रतिस्पर्धा में बदल गई।

प्रश्न 2. “वेरिंगदे ओस्ट इंडिशे कम्पनी (VOC)” की स्थापना कब हुई थी और यह किस देश की कम्पनी थी?

(A) 1600 – इंग्लैंड
(B) 1602 – नीदरलैंड
(C) 1605 – पुर्तगाल
(D) 1612 – फ्रांस

उत्तर: (B) 1602 – नीदरलैंड

स्पष्टीकरण:
1602 में कई डच व्यापारिक कंपनियों को मिलाकर एक विशाल संयुक्त कम्पनी की स्थापना हुई जिसका नाम था "वेरिंगदे ओस्ट इंडिशे कम्पनी (VOC)"। यह कंपनी नीदरलैंड (हालैंड) की थी और इसका उद्देश्य एशिया के साथ मसाला व्यापार को नियंत्रित करना था। इसे ही अंग्रेज़ी में "Dutch East India Company" कहा जाता है।

प्रश्न 3. भारत में डचों की पहली फैक्ट्री कहां और कब स्थापित की गई थी?

(A) सूरत – 1608
(B) पुलीकट – 1610
(C) मसूलीपट्टनम – 1605
(D) कासिम बाजार – 1650

उत्तर: (C) मसूलीपट्टनम – 1605

स्पष्टीकरण:
डचों ने 1605 ई. में भारत में अपनी पहली फैक्ट्री मसूलीपट्टनम में स्थापित की थी। यह फैक्ट्री पूर्वी तट पर स्थित थी और मसालों के व्यापार में डचों की प्रारंभिक भागीदारी का प्रमाण है। यह फैक्ट्री आगे चलकर डचों के भारतीय व्यापारिक आधार का प्रमुख केंद्र बनी।

प्रश्न 4. डचों ने किस भारतीय शासक से समझौता करके पुलीकट में फैक्ट्री स्थापित की थी?

(A) गोलकुंडा के सुल्तान
(B) बीजापुर का सुल्तान
(C) चन्द्रगिरि के राजा
(D) विजयनगर के राजा

उत्तर: (C) चन्द्रगिरि के राजा

स्पष्टीकरण:
1610 ई. में डचों ने चन्द्रगिरि के राजा से संधि कर पुलीकट में एक फैक्ट्री की स्थापना की। उन्होंने इसे अपना मुख्यालय बना लिया और यहीं पर पैगोडा नामक स्वर्ण मुद्रा के सिक्के भी ढाले। इससे स्पष्ट होता है कि डचों ने स्थानीय भारतीय राजनीतिक व्यवस्था से सहयोग बनाकर व्यापारिक विस्तार किया।

प्रश्न 5. डचों ने भारत में किस युद्ध के बाद अपनी शक्ति खो दी?

(A) पानीपत का तृतीय युद्ध
(B) प्लासी का युद्ध
(C) बेदरा का युद्ध – 1759
(D) बक्सर का युद्ध

उत्तर: (C) बेदरा का युद्ध – 1759

स्पष्टीकरण:
डचों की भारत में शक्ति 1759 के “बेदरा (बंगाल) के युद्ध” के बाद समाप्त हो गई, जब उन्हें अंग्रेजों ने पराजित किया। यह युद्ध भारत में उपनिवेशवादी प्रतिस्पर्धा का स्पष्ट उदाहरण है, जिसमें अंग्रेजों ने डचों को परास्त कर भारत में व्यापारिक प्रभुत्व स्थापित किया।

प्रश्न 6. डचों का प्राथमिक व्यापारिक लक्ष्य भारत में क्या था?

(A) चाय और अफीम
(B) हीरा और मोती
(C) मसाले (विशेषकर काली मिर्च)
(D) रेशमी वस्त्र

उत्तर: (C) मसाले (विशेषकर काली मिर्च)

स्पष्टीकरण:
डचों का मूल उद्देश्य था काली मिर्च और अन्य मसालों का व्यापार करना, जो कि उस समय यूरोप में अत्यंत मूल्यवान थे। यद्यपि बाद में उन्होंने भारतीय वस्त्रों और रेशम के व्यापार की ओर रुख किया, लेकिन प्रारंभ में उनका ध्यान मसालों पर ही केंद्रित था।

प्रश्न 7. डचों का प्रमुख एशियाई व्यापारिक केन्द्र कौन-सा क्षेत्र बन गया था?

(A) मलेशिया
(B) इण्डोनेशिया
(C) श्रीलंका
(D) बर्मा

उत्तर: (B) इण्डोनेशिया

स्पष्टीकरण:
डचों ने मसालों के स्त्रोत को नियंत्रित करने हेतु इंडोनेशिया (विशेष रूप से मलुक्का द्वीपों) को अपना प्रमुख व्यापारिक केन्द्र बना लिया। यहां से मसालों का व्यापार करना उनके लिए अधिक लाभदायक सिद्ध हुआ। यह VOC की सामरिक नीति का हिस्सा था।

प्रश्न 8. भारत में डच फैक्ट्रियों की स्थापना किन-किन स्थानों पर हुई थी?

(A) केवल सूरत और मद्रास
(B) मसूलीपट्टनम, निजामपत्तम, पुलीकट
(C) कोचीन और गोवा
(D) पांडिचेरी और बंबई

उत्तर: (B) मसूलीपट्टनम, निजामपत्तम, पुलीकट

स्पष्टीकरण:
डचों ने भारत में मसूलीपट्टनम (1605), पोत्तोपोली/निजामपत्तम, और पुलीकट (1610) में फैक्ट्रियाँ स्थापित की थीं। इन स्थलों का चयन समुद्र के समीपता और व्यापारिक गतिविधियों की दृष्टि से किया गया था।

प्रश्न 9. डचों ने भारत में किस वस्तु के निर्यात को अधिक महत्व देना प्रारंभ किया था?

(A) मसाले
(B) अफीम
(C) भारतीय कपड़े
(D) नमक

उत्तर: (C) भारतीय कपड़े

स्पष्टीकरण:
आरंभिक मसाला व्यापार के बाद, डचों ने महसूस किया कि भारतीय कपड़े जैसे मलमल, चित्ती, रेशमी वस्त्र आदि अत्यंत लाभकारी हैं। अतः उन्होंने मसालों के स्थान पर कपड़ों के निर्यात को अधिक महत्व देना शुरू किया।

प्रश्न 10. कासिम बाजार में डचों ने किस प्रकार का उद्योग स्थापित किया था?

(A) जहाज निर्माण
(B) रेशम की चक्की
(C) हथियार निर्माण
(D) तंबाकू की खेती

उत्तर: (B) रेशम की चक्की

स्पष्टीकरण:
डचों ने बंगाल के कासिम बाजार में रेशम की चक्की (Silk Spinning Mill) का उद्योग स्थापित किया, जिससे उन्होंने रेशमी वस्त्रों का उत्पादन और निर्यात आरंभ किया। इससे यह स्पष्ट होता है कि वे भारतीय उद्योगों को अपने नियंत्रण में लेने लगे थे।

अंग्रेज

          15वीं शताब्दी के अंत तक एशियाई वस्तुएं यूरोप में पहुंचने लगी थीं, जिनपर व्यापारियों को यूरोप में अत्यधिक लाभ मिल रहा था। इस लाभ के व्यापार से अंग्रेज पूर्व की ओर आने के लिए प्रेरित हुए।  भारत में अंग्रेजों का आगमन डचों के पश्चात हुआ किन्तु ईस्ट इण्डिया कम्पनी की स्थापना डच ईस्ट इण्डिया कम्पनी से पहले ही हो चुकी थी। 

           सितम्बर 1599 ई0 में लंदन के कुछ व्यापारियों द्वारा पूर्वी देशों के साथ व्यापार करने के उद्देश्य से एक कम्पनी का गठन किया, जिसका नाम "गवर्नर एण्ड कम्पनी ऑफ मर्चेन्ट्स ऑफ लंदन इन टू द ईस्ट इण्डीज" रखा गया। इंग्लैण्ड की महारानी एलिजाबेथ प्रथम द्वारा इसे 15 वर्षों के लिए पूर्वी देशों के साथ व्यापार करने का एकाधिकार प्रदान किया गया। कम्पनी का प्रबन्धन - ईस्ट इण्डिया कम्पनी के प्रबन्धन के लिए एक 24 सदस्यीय निदेशक मण्डल (बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स) की व्यवस्था की गयी थी, जिनका चुनाव प्रत्येक वर्ष कम्पनी के शेयरधारकों (कोर्ट ऑफ प्रोप्राइटर्स) द्वारा किया जाता था।

बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स - यह कम्पनी का मुख्य संचालन मंडल होता था। इसमें कुल 24 निदेशक होते थे। इन निदेशकों का चुनाव प्रत्येक वर्ष शेयरधारकों द्वारा किया जाता था। ये यह तय करते थे कि किसे भारत भेजा जाएगा (अधिकारियों की नियुक्ति)। कहां पर नई फैक्ट्री, व्यापारिक चौकी या किला बनेगा। कम्पनी को क्या माल खरीदना और बेचना है – जैसे मसाले, रेशम, चाय, कपड़ा आदि। कम्पनी के लाभ, हानि और विस्तार से जुड़े नीतिगत निर्णय भी यही मंडल लेता था

कोर्ट ऑफ प्रोपराइटर्सये कम्पनी के असली मालिक – यानी जिन्होंने कम्पनी में पैसा निवेश किया था। इन्हें ही "शेयरधारक (shareholders)" कहा जाता था। शेयरधारक कम्पनी की वार्षिक बैठकों में भाग लेते थे। ये लोग वोटिंग के माध्यम से निदेशक मंडल (Court of Directors) का चुनाव करते थे। कम्पनी के प्रमुख फैसलों पर मंजूरी देने का अधिकार इन्हीं के पास था।

          1608 ई0 में ब्रिटेन के सम्राट जेम्स प्रथम द्वारा भारत में व्यापारिक कोठियां खोलने के उद्देश्य से कैप्टन हाकिन्स को मुगल सम्राट जहांगीर के दरबार में भेजा। उल्लेखनीय है कि हाकिंस पहला अंग्रेज था जिसने समुद्र के रास्ते से भारत की भूमि में प्रवेश किया। हाकिंस जो तुर्की एवं फारसी भाषाओं का ज्ञाता था, ने मुगल बादशाह जहांगीर से फारसी में बात की। 1609 ई0 में हाकिन्स मुगल बादशाह जहांगीर से मिलकर सूरत में फैक्ट्री स्थापित करने की अनुमति मांगी किन्तु स्थानीय व्यापारियों एवं पुर्तगालियों के विरोध के परिणामस्वरुप उसे स्वीकृति नहीं मिली। परन्तु जहांगीर ने 1613 ई0 में सूरत में स्थाई कारखाना स्थापित करने के लिए अंग्रेजों को अनुमति प्रदान की, इस बीच 1611 ई0 में अंग्रेजों द्वारा मसूलीपट्टनम में प्रथम व्यापारिक कोठी की स्थापना कर दी गयी थी।

          जहांगीर के दरबार में 1615 ई0 में  जेम्स प्रथम का दूत सर टामस रो आया, उसने जहांगीर से समस्त मुगल साम्राज्य में व्यापार करने एवं फैक्ट्रियां स्थापित करने का अधिकार पत्र (शाही फरमान) प्राप्त कर लिया। 1615 ई0 का शाही फरमान केवल व्यापारिक अनुमति नहीं था, बल्कि अंग्रेजों को भारत में एक वैध और संरक्षित व्यापारिक शक्ति के रूप में स्थापित करने वाला प्रारंभिक औपचारिक दस्तावेज़ था। परिणामस्वरुप अंग्रेजों ने आगरा, अहमदाबाद, बड़ौदा, भरुच एवं अन्य स्थानों पर फैक्ट्री की स्थापना की। इस फारमान से उन्हें व्यापारिक गतिविधियों के लिए सैनिक सुरक्षा रखने का अधिकार मिला। स्थानीय अधिकारियों को आदेश दिया गया कि वे अंग्रेज व्यापारियों को सहयोग दें तथा उनसे किसी प्रकार का ज़बरदस्ती कर न वसूला जाए। 

          यह फरमान अंग्रेज ईस्ट इंडिया कंपनी की भारत में स्थायी जड़ जमाने की शुरुआत था। मुगलों के संरक्षण में अंग्रेज व्यापारियों को राजनीतिक संरक्षण मिला। इससे अंग्रेजों की स्थिति डच व पुर्तगालियों के मुकाबले मजबूत हुई। अंग्रेजों द्वारा 1633 ई0 में उड़ीसा के बालासोर में, 1639 ई0 में मद्रास में तथा 1651 ई0 में हुगली में भी व्यापारिक कोठियां खोल दी गयी। 

          1661 ई0 में पुर्तगाल राजकुमारी कैथरीन व ब्रिटेन के सम्राट चार्ल्स-II ने विवाह कर लिया।  इस विवाह में दहेजस्वरुप उन्हे बम्बई मिला, जिसे उन्होंने 10 पाउंड वार्षिक के मामूली किराये पर ईस्ट इण्डिया कम्पनी को दे दिया।  इसके पूर्व 1639 ई0 में फ्रांसिस डे  जो  एक ब्रिटिश व्यापारी एवं ईस्ट इंडिया कम्पनी में अधिकारी था, ने चन्द्रगिरि के राजा से मद्रास को लीज पर ले लिया तथा वहां पर एक किलेबन्द कोठी बनाई। इस किलेबन्द कोठी का नाम "सेंट फोर्ट जार्ज" पड़ा। 

          अंग्रेज धीरे-धीरे मुगल राजनीति में हस्तक्षेप करना आरम्भ कर दिये, 1686 ई0 में उन्होंने हुगली में कई मुगल जहाजों को पकड़ लिया, जिससे उनका मुगल सेनाओं से संघर्ष हुआ जिसमें औरंगजेब की सेना ने उन्हे पराजित कर दिया। अंततः अंग्रेजों को औरंगजेब से माफी मांगनी पड़ी तथा हर्जाने के रुप में अंग्रेजों को 11.50 लाख रुपये देने पड़े।

          1691 ई0 में औरंगजेब द्वारा एक शाही फरमान जारी किया गया जिसमें 3000 रुपये वार्षिक कर के बदले कम्पनी को सीमा-शुल्क से छूट दे दी गयी। यानी कम्पनी के राजस्व अधिकारियों को हर बार कर देने की बजाय, एक ही बार साल में 3000 रुपये देने होंगे और फिर पूरे साल करमुक्त व्यापार किया जा सकेगा। कम्पनी ने 1200 रुपये का भुगतान कर तीन गांवों-सूतानाती, कोलकाता एवं गोविन्दपुर की जमींदारी प्राप्त कर ली, तथा वहां पर "फोर्ट विलियम" नामक किले का निर्माण किया। बाद में जॉब चॉरनाक के प्रयासों से इसी स्थान पर कलकत्ता नगर की स्थापना हुई। 

          1717 ई0 में कम्पनी के एक डॉक्टर द्वारा मुगल सम्राट फर्रुखशियर का सफल इलाज करने के कारण, फर्रुखशियर ने व्यापारिक सुविधाओं वाला एक शाही फरमान जारी किया। इस फरमान के अन्तर्गत कम्पनी को बंगाल में 3000 रुपये वार्षिक किराये के बदले कम्पनी को बंगाल में मुक्त व्यापार की छूट मिल गयी। 

 

डेनिस

 

अंग्रेजों  के बाद डेनिस 1616 ई0 में भारत आये। तंजौर जिले के ट्रांकेबोर में 1620 ई0 में उन्होने अपनी पहली फैक्ट्री, जबकि बंगाल के सीरमपुर में 1676 ई0 में दूसरी फैक्ट्री स्थापित की। 1845 ई0 में उन्होंने अपनी सभी फैक्ट्रियों को ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी को बेचकर भारत से चले गये। 

 

फ्रांसीसी

 

अन्य यूरोपीय कम्पनियों की तुलना में भारत में फ्रांसीसियों ने बाद में प्रवेश किया। सन 1664 ई0 में फ्रांस के सम्राट लुई 14वें के समय उनके मन्त्री कोल्बर्ट के प्रयासों से फ्रांसीसी व्यापारिक कम्पनी "कम्पनी द इंड ओरियंटल" की स्थापना हुई। इस कम्पनी का निर्माण फ्रांस की सरकार द्वारा किया गया था तथा इसका सारा खर्चा भी सरकार ही वहन करती थी। 

           भारत में फ्रांसीसियों की पहली कोठी फ्रैंकोकैरो द्वारा सन 1668 ई0 में सूरत में तथा 1669 ई0 में मसूलीपट्टनम में दूसरी फैक्ट्री स्थापित हुई। 1673 ई0 में कम्पनी के निदेशक फ्रैंको मार्टिन द्वारा वलिकोंडापुरम के मुस्लिम सूबेदार शेर खां लोदी से एक छोटा गांव प्राप्त करके उसमें एक फ्रांसीसी बस्ती स्थापित की, जिसे पाण्डिचेरी नाम से जाना जाता है। यह पूरी तरह किलाबन्द थी, 1674 ई0 में फ्रैंको मार्टिन इस बस्ती का प्रमुख हुआ। फ्रांसीसियों द्वारा 1721 ई0 में मारीशस पर, 1725 ई0 में मालाबार समुद्र तट पर स्थित माहे पर एवं 1739 ई0 में कराईकल पर कब्जा कर लिया। पाण्डिचेरी को 1701 ई0 में फ्रांसीसियों की सभी बस्तियों का मुख्यालय बनाया गया और फ्रैंको मार्टिन को भारत में फ्रांसीसी मामलों का महानिदेशक बनाया गया। फ्रांसीसी गवर्नर डूप्ले के समय में फ्रांसीसी प्रभुत्व की स्थापना हुई। 

आंग्ल फ्रांसीसी संघर्ष- 1742 ई0 के पश्चात व्यापारिक लाभ कमाने के साथ-साथ फ्रांसीसियों की राजनीतिक महत्वांकांक्षायें जागृत हुईं, परिणामस्वरुप अंग्रेज एवं फ्रांसीसियों के मध्य युद्ध छिड़ गया। इन युद्धों को कर्नाटक के युद्ध के रुप में जाना जाता है। 

प्रथम कर्नाटक युद्ध (1746 -48) - यह युद्ध आस्ट्रिया के उत्तराधिकार युद्ध का विस्तार मात्र था। गृह सरकारों की आज्ञा के विरुद्ध ही दोनों पक्ष 1746 ई0 में युद्ध प्रारम्भ कर दिये। युद्ध की पहल अंग्रेजों की तरफ से हुई। अंग्रेजी नौसेना ने कुछ फ्रांसीसी जलपोत पकड़ लिये थे जिससे डूप्ले ने कर्नाटक के नवाब से अपने जहाजों की सुरक्षा की प्रार्थना की परन्तु अंग्रेजों ने नवाब की किसी बात पर गौर नही किया। परिणामस्वरुप डूप्ले द्वारा सेना की सहायता से मद्रास पर अधिकार कर लिया।

सेन्टथोमे का युद्ध (1748 ई0) – कर्नाटक के युद्ध में यह सर्वप्रमुख युद्ध है। यह युद्ध फ्रांसीसी सेना एवं नवाब अनवरुद्दीन के मध्य लड़ा गया जिससे फ्रांसीसी विजयी रहे।

ए ला शापेल की संधि (1748 ई0) – यूरोप में इस संधि के द्वारा आस्ट्रिया के उत्तराधिकार का युद्ध समाप्त हो गया, जिसके कारण कर्नाटक का प्रथम युद्ध भी समाप्त हो गया। इस संधि के द्वारा मद्रास अंग्रेजों को तथा अमेरिका में लुईसवर्ग फ्रांसीसियों को वापस मिल गये।

द्वितीय कर्नाटक युद्ध (1749 - 54) - यह युद्ध कर्नाटक तथा हैदराबाद के उत्तराधिकार का युद्ध था जिसमें अंग्रेज तथा फ्रांसीसी शामिल हो गये। 1748 ई0 में हैदराबाद के निजाम आसफजाह (निजामुलमुल्क) की मत्यु के उपरान्त उनके पुत्र नासिरजंग तथा भांजे मुजफ्फरजंग के बीच उत्तराधिकार को लेकर विवाद प्रारम्भ हो गया। दूसरी ओर कर्नाटक के नवाब अनवरुद्दीन तथा उनके बहनोई चन्दा साहब के मध्य विवाद प्रारम्भ हो गया। डूप्ले इस स्थिति में राजनैतिक लाभ उठाने के लिए हैदराबाद के निजाम के लिए मुजफ्फरजंग तथा कर्नाटक का नवाब बनाने के लिए चन्दा साहब को अपनी सेनाओं द्वारा सहायता देने का वचन दिया।

अम्बूर का युद्ध (1749 ई0) – मुजफ्फरजंग, चन्दा साहब एवं डूप्ले की संयुक्त सेना ने कर्नाटक पर आक्रमण कर अम्बूर की लड़ाई में अनवरुद्दीन को पराजित कर मार डाला जबकि अनवरुद्दीन का पुत्र एवं उत्तराधिकारी मुहम्मद अली त्रिचनापल्ली के दुर्ग में भाग गया। चन्दा साहब ने कर्नाटक के शेष भाग पर अधिकार कर “अर्काट” को अपनी राजधानी बनाकर शासन करने लगे।

          इस बीच अंग्रेजों ने फ्रांसीसियों की बढ़ती शक्ति को देखकर  हैदराबाद के निजाम पद पर नासिरजंग का पक्ष लिया लेकिन युद्ध में नासिरजंग की सेना ने विद्रोह कर दिया जिससे नासिरजंग मारा गया। इसी समय डूप्ले ने मुजफ्फरजंग को हैदराबाद का निजाम बना दिया।

          अंग्रेजों के लिए यह मुश्किल स्थिति थी त्रिचनापल्ली से मुहम्मद अली को कैसे वापस लाया जाये क्योंकि चन्दा साहब की फौज ने वहां पर घेरा डाला था। इसी समय एक अंग्रेज क्लर्क क्लाइव ने सुझाव दिया कि यदि अर्काट पर घेरा डाला जाये तो चन्दा साहब त्रिचनापल्ली से हट जायेगें और हुआ भी यही। इस प्रकार अंग्रेजों ने 1752 ई0 में मराठा सरदार मुरारी राव के सहयोग से अर्काट पर आक्रमण कर दिया जिसमें चन्दासाहब का पुत्र मारा गया, बाद में चन्दा साहब को भी मार दिया गया तथा मुहम्मद अली कर्नाटक का नवाब बन गया। इसी बीच डूप्ले के फ्रांसीसी सरकार ने वापस बुला लिया तथा गोडेहू को पाण्डिचेरी का गवर्नर बना दिया गया। गोडेहू ने अंग्रेजों से पाण्डिचेरी की संधि कर ली।

पाण्डिचेरी की संधि (1755 ई0) – इस संधि के द्वारा अंग्रेजों एवं फ्रांसीसियों ने मुगल सम्राट या अन्य भारतीय नरेशों द्वारा दी गयी उपाधियों को त्याग दिया तथा भारतीय नरेशों के झगड़ों में हस्तक्षेप न करने का वादा किया। दोनों कम्पनियों को अपने-अपने क्षेत्र वापस मिल गये। इस प्रकार कर्नाटक का दूसरा युद्ध अनिश्चित रहा परन्तु स्थल पर अंग्रेजी सेना की प्रधानता सिद्ध हुई तथा उनका प्रत्याशी मुहम्मद अली कर्नाटक का नवाब बन गया।

तृतीय कर्नाटक युद्ध (1758 - 63) - सन 1756 ई0 में यूरोप में सप्तवर्षीय युद्ध प्रारम्भ हो गया जिससे पुनः अंग्रेज एवं फ्रांसीसी एक दूसरे के विरोध में आ गये एवं एक दूसरे के स्थानों पर आक्रमण करना शुरु कर दिया।

वाण्डियावाश का युद्ध (1760) – अंग्रेजों एवं फ्रांसीसियों के मध्य निर्णायक लड़ाई वाण्डियावाश में लड़ी गयी जिसमें अंग्रेजी सेना ने फ्रांसीसी सेना को पराजित कर दिया। युद्ध का समापन पेरिस की संधि से हुआ।

पेरिस की संधि (1763 ई0) – अंग्रेजों एवं फ्रांसीसियों के बीच पेरिस संधि पर हस्ताक्षर होते ही सप्तवर्षीय युद्ध समाप्त हो गया। इस संधि के द्वारा फ्रांसीसियों को भारत में स्थित उनके सभी कारखाने वापस कर दिये गये, लेकिन अब उनकी न तो किलेबन्दी की जा सकती थी और न ही वहां पर सैनिक डेरे डाल सकते थे। फ्रांसीसी अब सिर्फ व्यापारी का कार्य कर सकते थे। तृतीय कर्नाटक युद्ध निर्णायक साबित हुआ। युद्ध में पराजय के फलस्वरुप भारत में फ्रांसीसी साम्राज्य की स्थापना के सारे अवसर नष्ट हो गये। इस प्रकार तृतीय कर्नाटक युद्ध ने यह फैसला तो जरुर कर दिया कि भारत में कौन राज्य नहीं करेगा।  

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